मांस पर्यावरण में कार्बन डाईआक्साइड को बढ़ाता है.इसके चलते किस राज्य में हुआ कुत्ते के मीट पर बैन
एक ऐसा राज्य जो अपनी नैसर्गिक खुबसुरती ,संस्कृति ओर खनपान की अदतो के कारण भारत की जैव विविधता को काफी मुल्यवान बनाता है वहीं अपने मीट मार्केट यानी कि नागा फूड के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसमें साॅप,मेंढ़क,कुत्ता,केंचुआ आदी का माॅंस मिलता है। ये भले ही बाकी हिन्दुस्तान से अलग दिखता हो लेकिन चीन,दक्षिणी कोरिया जैसे देशो में यह एक सामान्य खाने के तौर पर लिया जाता है।
हाल ही में नागालैंड सरकार ने इंडियन एनिमल प्रोटेक्सन ओरगेनाजेशन की अपील पर कुत्ते के माॅंस की बिक्री,स्मगलिंग,और उपभोग पर बैन लगा दिया हैं। क्योकि यह पाया गया हैकि कुत्तों को बहुत ही बेरहमी से रखा जाता हैं और आसाम व पश्चिमी बंगाल से मात्र 50 रूपयें में खरीद कर उसका मॅंस 200 रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जा रहा था।
एक वरिष्ठ वकील का कहना है कि हमें बाकी जानवरो को भी देखने की जरूरत हैं उदाहरण के तौर पर एक पोलट्री में कितन बेर्ददी से एक ही बाक्स में कितने मुर्गो को ठूसा जाता है।
युएन ओ की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि हम पूर्णतः माॅंस रहित भोजन पर आ जाय तो जलवायु परिवर्तन में हो रहे बदलाव को रोका जा सकता है। इसको इस प्रकार से समझा जा सकता हैं कि एक गाय का मीट इतनी मिथेन गैस का उत्पादन करता हैं जितना एक कार को 160 मिलोमीटर चलाने से प्रदूषण उत्पन्न होता है।
इन आकडों से ऐसा अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यदि हम सभी शाकाहारी हो जाय तो 2050 तक आठ बिलियन टन कार्बन डाई आक्साइड हर साल कम कर सकते है। जलवायु परिवर्तन से लड़ा जा सकता हैं और बढ़ते तापमान से इंसान की मुसीबतें भी कम की जा सकती है।
- लेखक अनुप्रिया शर्मा